बुधवार, 26 मई 2021

अध्याय 7, अश्वत्थामा,अर्जुन.

अर्जुन ने कहा
श्री कृष्ण!
तुम सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मा हो।
तुम्हारी शक्ति अनंत है।
तुम ही भक्तों को अभय देने वाले हो। जो संसार की धधकती हुई आग में जल रहे हैं उन जीवो को उससे उबारने वाले एकमात्र तुम ही हो।1/7/22
तुम प्रकृति से परे रहने वाले आदि पुरुष साक्षात परमेश्वर हो। अपने चितशक्ति(स्वरूप शक्ति) से बहिरंग एवं त्रिगुणमयी माया को दूर भगा कर अपने अद्वितीय स्वरूप में स्थित हो।1/7/23
वही तुम अपने प्रभाव से माया-मोहित जीवो के लिए धर्मआदि रूप कल्याणका विधान करते हो1/7/24
तुम्हारा यह अवतार पृथ्वीका भार हरण करने के लिए और तुम्हारे अनन्यप्रेमी भक्तजनोंके निरंतर स्मरण ध्यान करने के लिए है।1/7/25
स्वयं प्रकाश स्वरूप श्री कृष्ण!यह भयंकर तेज सब ओर से मेरी ओर आ रहा है। यह क्या है, कहां से, क्यों आ रहा है-- इसका मुझे बिल्कुल पता नहीं है।1/7/26

अध्याय 5, कीर्तन महिमा,

हे नारद मुनि! आपका ज्ञान अगाध है।आप साक्षात ब्रह्मा जी के मानस पुत्र है।आप ही मेरी खिन्नता का कारण बताइए। आप समस्त गोपनीय रहस्यों को जानते ...1/5/5


अध्याय6, नारद चरित्र शेष

 नारद जी के जन्म और साधना की बातें सुनकर व्यास जी ने प्रश्न किया कि _आपने शेष आयु किस प्रकार व्यतीत की, और मृत्यु के समय आपने किस विधि से अ...1/6/3

हे नारद मुनि! आपका ज्ञान अगाध है।आप साक्षात ब्रह्मा जी के मानस पुत्र है।आप ही मेरी खिन्नता का कारण बताइए। आप समस्त गोपनीय रहस्यों को जानते ...1/5/5

अध्याय 4, व्यास काअसंतोष

श्रीमद्भागवत की रचना क्यों हुई? 
कैसे हुआ भक्ति और ज्ञान का संगम? स्त्री शूद्र और पतित द्विजाती_तीनों ही वेद श्रवण के अधिकारी नहीं हैं। इसलि...1/4/25

*दुखों से छूटने का उपाय*_
भगवान के दिव्य जन्म की कथा अत्यन्त गोपनीय और रहस्यमई है जो मनुष्य एकाग्र चित्त से नियम पूर्वक साईं काल और प्रात:काल प्रेम .. प्रेम से इसका पाठ करता है वह सब दुखों से छूट जाता है.1/3/29






अध्याय 3, अवतार

सृष्टि  
सृष्टि के आदि में भगवान ने लोको के निर्माण की इच्छा की। इच्छा होते ही उन्होंने महतत्व आदि से निस्पन्न पुरुषरुप को ग्रहण किया। उसमें 10 इंद्रिया,एक मन और 5भूत-- यह 16 कलाएं थी।1/3/1
उन्होंने कारण जल में शयन करते हुए जब योग निद्रा का विस्तार किया, तब उनकी नाभि-सरोवरमेंसे एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से प्रजापतियों केअधिपति ब्रह्माजी उत्पन्न हुए।1/3/2
भगवान ने उस विराट रूप के अंग-प्रत्यंग में ही समस्त लोको की कल्पना की गई है, वह भगवान का विशुद्ध सत्वमय श्रेष्ठ रूप है।1/3/3
 योगी लोग दिव्य दृष्टि से भगवान के उस रूप का दर्शन करते हैं।भगवान का रूप हजारों पैर, जांघें,भुजाएं और मुखोंके कारण अत्यन्तविलक्षण हैं; उसमें सहस्त्रों सिर, हजारों कान, हजारों आंखे और हजारों नसिकाएं हैं। हजारों मुकुट, वस्त्र और कुंडल आदि आभूषणों से वह उल्लसत
 रहता हैं।1/3/4
भगवान का यही पुरुष रूप जिसे नारायण कहते हैं, अनेक अवतारों का अक्षय कोश है-इसी से सारे अवतार प्रकट होते हैं। इस रूप के छोटे से छोटे अंशु से देवता पशु पक्षी और मनुष्य आदि योनियों की सृष्टि होती है। 1/3/5

*दुखों से छूटने का उपाय*_
भगवान के दिव्य जन्म की कथा अत्यन्त गोपनीय और रहस्यमई है जो मनुष्य एकाग्र चित्त से नियम पूर्वक साईं काल और प्रात:काल प्रेम .. प्रेम से इसका पाठ करता है वह सब दुखों से छूट जाता है.1/3/29




अध्याय 2 कथा और भक्ति

वेदव्यास स्तुति,स्कंध1,अध.1:  *श्रीमद्भागवत के रूप में आप साक्षात श्री कृष्ण चंद्र जी विराजमान हैं। नाथ !मैंने भवसागर से छुटकारा पाने के लिए आप की शरण ली हैं। मेरा यह मन...

अध्याय1,मंगलाचरण

प्रथम अध्याय 

मंगलाचरण

*जिससे इस जगत की सृष्टि स्थिति और प्रलय होते हैं।वह जड़ नहीं चेतन है, परतंत्र नहीं स्वयं प्रकाश है ,जिस के संबंध में बड़े-बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं, जिसमें यह त्रिगुणमयि  जाग्रत स्वप्न ,सुषुप्ति रूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अधिष्ठान सत्ता से सत्यवत प्रतीत हो रही है, उस अपनी स्वयं प्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और माया कार्य से पूर्णतया मुक्त रहने वाले परम सत्य रूप परमात्मा का ध्यान करते हैं*1/1/1.

प्रश्न:-

सब शास्त्रों में, पुराणों और गुरुजनों के उपदेशों में कल युगी जीवो के परम कल्याण का सहज साधन क्या निश्चित किया गया है ?1/1/9







अध्याय 7, अश्वत्थामा,अर्जुन.

अर्जुन ने कहा श्री कृष्ण! तुम सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मा हो। तुम्हारी शक्ति अनंत है। तुम ही भक्तों को अभय देने वाले हो। जो संसार की धधकती हु...