हे नारद मुनि! आपका ज्ञान अगाध है।आप साक्षात ब्रह्मा जी के मानस पुत्र है।आप ही मेरी खिन्नता का कारण बताइए। आप समस्त गोपनीय रहस्यों को जानते ...1/5/5
हे अजित! आपकी जय, हो जय हो! झूठे गुण धारण करके चराचर जीव को आच्छादित करने वाली इस माया को नष्ट कर दीजिए। आपके बिना बेचारे जीव इसको नहीं मार सकेंगे- नहीं पार कर सकेंगे। वेद इस बात का गान करते रहते हैं कि आप सकल सद्गुणों के समुद्र हैं।(अध्याय 1 से 7) 1.प्रश्न2.भक्तिका महत्व,3.अवतार,4. व्यास असंतोष,5.नारद,कीर्तन,6. शेष नारद,7.अश्वथामा,अर्जुन मानमर्दन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अध्याय 7, अश्वत्थामा,अर्जुन.
अर्जुन ने कहा श्री कृष्ण! तुम सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मा हो। तुम्हारी शक्ति अनंत है। तुम ही भक्तों को अभय देने वाले हो। जो संसार की धधकती हु...
-
प्रथम अध्याय मंगलाचरण *जिससे इस जगत की सृष्टि स्थिति और प्रलय होते हैं।वह जड़ नहीं चेतन है, परतंत्र नहीं स्वयं प्रकाश है ,जिस के संबंध में ...
-
सृष्टि सृष्टि के आदि में भगवान ने लोको के निर्माण की इच्छा की। इच्छा होते ही उन्होंने महतत्व आदि से निस्पन्न पुरुषरुप को ग्रहण किया। उसमें...
-
श्रीमद्भागवत की रचना क्यों हुई? कैसे हुआ भक्ति और ज्ञान का संगम? स्त्री शूद्र और पतित द्विजाती_तीनों ही वेद श्रवण के अधिकारी नहीं हैं। इसलि...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें