हे अजित! आपकी जय, हो जय हो! झूठे गुण धारण करके चराचर जीव को आच्छादित करने वाली इस माया को नष्ट कर दीजिए। आपके बिना बेचारे जीव इसको नहीं मार सकेंगे- नहीं पार कर सकेंगे। वेद इस बात का गान करते रहते हैं कि आप सकल सद्गुणों के समुद्र हैं।(अध्याय 1 से 7) 1.प्रश्न2.भक्तिका महत्व,3.अवतार,4. व्यास असंतोष,5.नारद,कीर्तन,6. शेष नारद,7.अश्वथामा,अर्जुन मानमर्दन
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अध्याय 7, अश्वत्थामा,अर्जुन.
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