बुधवार, 26 मई 2021

अध्याय 3, अवतार

सृष्टि  
सृष्टि के आदि में भगवान ने लोको के निर्माण की इच्छा की। इच्छा होते ही उन्होंने महतत्व आदि से निस्पन्न पुरुषरुप को ग्रहण किया। उसमें 10 इंद्रिया,एक मन और 5भूत-- यह 16 कलाएं थी।1/3/1
उन्होंने कारण जल में शयन करते हुए जब योग निद्रा का विस्तार किया, तब उनकी नाभि-सरोवरमेंसे एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से प्रजापतियों केअधिपति ब्रह्माजी उत्पन्न हुए।1/3/2
भगवान ने उस विराट रूप के अंग-प्रत्यंग में ही समस्त लोको की कल्पना की गई है, वह भगवान का विशुद्ध सत्वमय श्रेष्ठ रूप है।1/3/3
 योगी लोग दिव्य दृष्टि से भगवान के उस रूप का दर्शन करते हैं।भगवान का रूप हजारों पैर, जांघें,भुजाएं और मुखोंके कारण अत्यन्तविलक्षण हैं; उसमें सहस्त्रों सिर, हजारों कान, हजारों आंखे और हजारों नसिकाएं हैं। हजारों मुकुट, वस्त्र और कुंडल आदि आभूषणों से वह उल्लसत
 रहता हैं।1/3/4
भगवान का यही पुरुष रूप जिसे नारायण कहते हैं, अनेक अवतारों का अक्षय कोश है-इसी से सारे अवतार प्रकट होते हैं। इस रूप के छोटे से छोटे अंशु से देवता पशु पक्षी और मनुष्य आदि योनियों की सृष्टि होती है। 1/3/5

*दुखों से छूटने का उपाय*_
भगवान के दिव्य जन्म की कथा अत्यन्त गोपनीय और रहस्यमई है जो मनुष्य एकाग्र चित्त से नियम पूर्वक साईं काल और प्रात:काल प्रेम .. प्रेम से इसका पाठ करता है वह सब दुखों से छूट जाता है.1/3/29




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