प्रथम अध्याय
मंगलाचरण
*जिससे इस जगत की सृष्टि स्थिति और प्रलय होते हैं।वह जड़ नहीं चेतन है, परतंत्र नहीं स्वयं प्रकाश है ,जिस के संबंध में बड़े-बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं, जिसमें यह त्रिगुणमयि जाग्रत स्वप्न ,सुषुप्ति रूपा सृष्टि मिथ्या होने पर भी अधिष्ठान सत्ता से सत्यवत प्रतीत हो रही है, उस अपनी स्वयं प्रकाश ज्योति से सर्वदा और सर्वथा माया और माया कार्य से पूर्णतया मुक्त रहने वाले परम सत्य रूप परमात्मा का ध्यान करते हैं*1/1/1.
प्रश्न:-
सब शास्त्रों में, पुराणों और गुरुजनों के उपदेशों में कल युगी जीवो के परम कल्याण का सहज साधन क्या निश्चित किया गया है ?1/1/9
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